बीते साल भारतीय रिजर्व बैंक ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें मुल्क के सभी राज्यों के आंकड़ों को शामिल किया गया है। राज्यवार अलग-अलग पहलुओं से जुड़ी अहम जानकारियां हैं। इसमें बैकिंग, बुनियादी ढांचा और उद्योग जैसे अहम आर्थिक पहलुओं के साथ-साथ सामाजिक और जनसांख्यिकीय आंकड़ों को भी रखा गया है। मसलन, आबादी, जन्म-मृत्यु दर, शिक्षा दर, साक्षरता दर आदि।
अभी भी गरीब हैं बीमारू राज्य
इस रिपोर्ट में राज्यवार गरीबी को भी समझाया गया है। इसके मुताबिक उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गरीब बसते हैं। करीब 6 करोड़। 2011 की जनगणना के मुताबिक सूबे की आबादी 20 करोड़ से कम है। यानि करीब 30 फीसद आबादी गरीब है। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी 14 करोड़ अमीर ही हैं। बस गरीबी का स्तर अलग-अलग हो सकता है। गरीबों की संख्या के लिहाज से देखें तो बिहार दूसरे नंबर पर है, जहां सवा 8 करोड़ की आबादी में साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा गरीब लोग बसते हैं।
कुल आबादी का करीब 34 फीसद! मध्य प्रदेश में आबादी के 32 फीसद गरीब हैं। सूची में इसके बाद महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल हैं। वैसे संख्या नहीं बल्कि प्रतिशत के लिहाज से देखें तो छत्तीसगढ़ सबसे उपर है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी दर का राष्ट्रीय औसत 22 फीसद से कम है। जबकि यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश आदि में 30 फीसद से ज्यादा! ऐसे में सवाल आंकड़ों को लेकर है। राज्यों की गंभीरता को लेकर है। इन राज्यों की सत्ता में बैठा हर दल विकास की बात ही करता रहा है। कोई भी अब अपने राज्य को बीमारू कहना पसंद नहीं करता लेकिन आरबीआई की रिपोर्ट हकीकत बयां करती है।
गरीबी सिर्फ चुनावी मुद्दा
वैसे हमारे मुल्क में गरीबी हमेशा से चुनावी मुद्दा रहा है। गरीबी हटाओ का नारा 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने दिया था। नारा हिट रहा। कांग्रेस को 350 से ज्यादा सीटें मिलीं थी। 45 साल बीत गए लेकिन गरीबी अभी भी हर तीसरे-चौथे भारतीय की शक्ल में मौजूद है।
प्राथमिकता में गरीबी!
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक हमारे मुल्क में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब हैं। हांलाकिं अच्छी बात ये कि गरीबी बढ़ने की गति धीमी हुई है। पिछले वर्षों में घटी भी है लेकिन उतनी नहीं, जितनी उम्मीद है। वैसे मौजूदा दौर में केन्द्र सरकार की एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं हैं, जिनका मकसद गरीबी हटाना है। मोदी सरकार सबका साथ सबका विकास की बात करती है, लेकिन गरीबी को लेकर अभी भी कई सवाल हैं। सत्ताओं की प्राथमिताएं दरअसल गरीबी हटाना नहीं बल्कि जाति आधारित राजनीति या पार्क-स्मारक हैं? क्या वाकई गरीबी कभी खत्म हो सकेगी?